बेरोजगारी की समस्या । Unemployment in hindi

      आज बेरोजगारी की समस्या विकसित एवं अल्पविकसित दोनो प्रकार के देशों में बनी हुई है। औऱ भारत जैसे देशों में तो विस्फोटक रूप धारण किये हुए है। और इसका मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि एवं पूँजी में कमी है ।

लेकिन आज मैं आपको एक ऐसे काऱण से अवगत कराने जा रहा हूँ , जिसका हम सबको पता है फिर भी हम उसे जानकर भी नही जानना चाहते। मुझे पता है कि इससे समस्या का पुर्ण रूप से समाधान नहीं है। लेकिन इतना जानता हूँ कि समस्या कम अवश्य हो सकती है।

यहाँ मैं आपको बहुत कम शब्दों ओर कम समय में समस्या की उस जड़ तक लेकर जाऊँगा । जहाँ से आप समझ पायेंगे कि कैसे हम अपने बच्चों को मालिक नहीं , नोकर बनने की शिक्षा दे रहें हैं। कैसे हम खुद उन्हें बेरोजगारी की तरफ धकेल रहें हैं।
चलिये शुरू करते हैं -

1. माता - पिता का अति संरक्षित स्वभाव
    जब बच्चा पैदा होता है , तब उसमे ना कोई गुण होता है , ना ही अवगुण। फिर उसमें ये सब गुण-अवगुण कहाँ से आते हैं। असल मे जब जब बच्चा बड़ा हो रहा होता है , तो उसका बौद्धिक विकास तेजी से हो रहा होता है । और तब हम उन्हें बहुत-सी चीजें करने से सिर्फ इसलिए रोकते रहते हैं कि कहीं उसे चोट ना लग जाये । मगर यह भूल जाते हैं कि इन सब चीज़ों से वो कुछ ना कुछ सीख रहा होता है । जब वह ये सब करेगा तभी तो वह चीज़ों को सीखता है । मानता हूँ बच्चों को समझाना ठीक होता है । कुछ चीज़ों से दूर रखना जरूरी होता है । मगर ऐसे में हमारा अति संरक्षित स्वभाव क्या उनके भविष्य के लिये ज्यादा हानिकारक नहीं। माता-पिता का अति संरक्षित होना बच्चों में आत्मविश्वास की कमी लाता है। जिसकी वजह से भविष्य में वो कोई भी कार्य अपने आत्मबल पर करने से डरता है । क्योंकि बचपन से ही उसने किसी भी छोटी बड़ी चीज में रिस्क लेना सीखा ही नही होता । इस बारे में विचार करें।

2. स्कूल , कोचिंग

    बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो उन्हें बहुत सारे परियोजना-कार्य मिलते हैं । इनकी शुरुआत इसलिए हुई थी कि बच्चा किताबी ज्ञान से अलग कुछ व्यावहारिक ज्ञान ले । मगर उससे भी आजकल माता - पिता ही पूर्ण करा देते हैं। ऐसे में हम उन्हें कुछ भी ऐसा सीखने का मौका ही नही देते की बच्चा बड़ा होकर नॉकरी ना कर के अपना कुछ करने की सोचे । औऱ यही सब देखकर अब स्कूल में भी पढ़ाई सिर्फ अंक दिलाने के लिए कराई जाती है । और माता-पिता भी इस में ही खुश रहते हैं कि उनका बच्चा स्कूल में अच्छा कर रहा है।

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   औऱ जिनके माता - पिता पढ़े -लिखे एवं पैसे वाले होते हैं । वो अपने बच्चों को कक्षा 6 से ही कोचिंग में पढ़ाने लगते हैं। मतलब जिंदगी का मतलब सिर्फ इतना भर रह गया है कि बच्चा अच्छी नोकरी करे , उसकी शादी हो जाये और आराम से जिये। उसे कभी इतना मौका ही नही देते की वह कुछ अपना काम शुरू करे , और शायद उसे मौका मिलता तो क्या पता वह ऐसा कार्य कर लेता की उसका नाम होता, पैसा होता और ना जाने कितने लोगों को उसमे रोजगार मिलता ।

3. शिक्षा एक धंदा
    क्योंकि जिनके पास पैसा होता है वो तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा करा देतें हैं। मगर ऐसे में बेचारा वो गरीब आदमी मारा जाता है । जिसके पास पैसे नहीं होते । क्योंकि ये कोचिंग बहुत ज्यादा पैसे लेकर पढ़ाई कराती है। और इसलिए बहुत-से माता - पिता ऋण लेकर अपने बच्चों को इनमे पढातें हैं।
    क्योंकि NEET/IIT और ऐसी बहुत-सी परीक्षाओं में पढ़ने वाले सभी बच्चों को दाखिला नहीं मिलता । ऐसे में वो बच्चें जो पढ़ने में अच्छे होते हैं , लेकिन उनका कहीं दाखिला नहीं हुआ होता । उनमे से अधिकतर बच्चे महंगें ट्यूशन देने लगते हैं। इसका एक कारण यह भी होता है कि कभी उन्होंने ने भी बहुत पैसे देकर ये पढ़ाई की । जिसकी वजह से अच्छी शिक्षा लगातार एक धंदा बनती जा रही है औऱ अब अच्छी शिक्षा कराना सबके बस की बात नहीं। और बेरोजगारी में ये भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। क्योंकि जिन बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिली , वो बेरोजगार ही बनते चले जाते हैं।

  
    ऐसी बहुत-सी समस्याएं जैसे बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, आरक्षण और ऐसे बहुत से काऱण हैं जिनकी वजह से आज हमारे देश में बेरोजगारी लगातार बढ़ती चली जा रही है। मगर मुझे लगता है कि माता-पिता का अति संरक्षित व्यवहार एवं आज की शिक्षा प्रणाली भी इसका एक  मुख्य कारण है।
    प्राचीनसमय मे आज के मुकाबले बहुत कम साधन थे । उसके बाद भी सब खुश रहते थे। क्योंकि गुरुकुल की शिक्षा प्रणाली में बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं बल्कि व्यावहारिक, मानसिक एवं भावनात्मक सभी प्रकार का ज्ञान देते थे ।
    और आज इतना आधुनिक होने के बाद भी अगर बच्चे बेरोजगार, मानसिक और सामाजिक तौर पर बीमार हैं तो सिर्फ आज की शिक्षा प्रणाली की वजह से ।
    बदलते समय के साथ प्रकति भी क्रमागत उन्नति ( evolution) करती रहती है। मगर हम अच्छा जीवन तो चाहतें हैं , मगर बदलते समय के साथ खुद को बदलना नहीं चाहते। ना ही समझना चाहते हैं कि आज “भारत को नौकरी तलाशने वालों से ज्यादा नौकरी निर्माताओं की जरूरत है" 

और यह संभव है एक बेहतर शिक्षा  प्रणाली और जिसमें किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी मिले । ऐसे परियोजना कार्य मिले जिनसे विद्यार्थियों को अपना आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिले एवं ऊपर लिखे हुए सभी कारणों पर विचार-विमर्श करें एवं उनमे सुधार लाने का प्रयत्न करें।

धन्यवाद 🙏

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